थांनै कांई ओळमौ देवां!

थारै तौ बात घड़ बैठगी

अंगां लागगी...

जूती सरकावतां- सरकावतां,

होकौ भरतां - भरतां,

टेरिया लगावता थका,

बापड़ै बडकां री जूंण गळगी!

इणी कारणै अबार-

थे पाछ क्यांमी राखणी चावौ?

हाजरी में कमी क्यूं घालणी चावौ?

बडका नै मिजळा नीं मारणा चावौ!

तद तौ-

नित वारै कूंळै ऊभा हुयनै

मुधरै सुर में हेली उपाड़ौ-

'साब, घरै हौ कांई?

म्हारै सारू कांई हुकम?'

स्रोत
  • सिरजक : दुलाराम सहारण ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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