थांनै कांई ओळमौ देवां!
थारै तौ आ बात घड़ बैठगी
अंगां लागगी...
जूती सरकावतां- सरकावतां,
होकौ भरतां - भरतां,
टेरिया लगावता थका,
बापड़ै बडकां री जूंण गळगी!
इणी कारणै अबार-
थे पाछ क्यांमी राखणी चावौ?
हाजरी में कमी क्यूं घालणी चावौ?
बडका नै मिजळा नीं मारणा चावौ!
तद ई तौ-
नित वारै कूंळै ऊभा हुयनै
मुधरै सुर में हेली उपाड़ौ-
'साब, घरै हौ कांई?
म्हारै सारू कांई हुकम?'