जहर भरयौ सारी जगती में, बरसीजै जहर झड़ी

कोई इमरत प्या देवै तौ, म्है पील्यां दोय घड़ी

कांटा कांटा रौ कांकड़, कांटा री ही बसती

महकतौ फूल मिल जावै तौ, म्है निरखां दोय घड़ी

धांसू बांसू बात करै बै, म्हासूं क्यूं करै

बै अणभोळै ही बोलै तौ, म्है मुळका दोय घड़ी

नटणौ ही नटणौ सै जाणै, नटणी ही सै समझै

कोई हां ही भर लेवे तौ म्है, हरखां दोय घड़ी

जीवण जबरौ जुध जाणियै, तावडियौ तपै घणौ

ठंडी छांवळी मिल जावै तौ, म्है बैठां दोय घड़ी

पौथ्यां ही पौथ्यां लिख भेजै, पण कोई नहीं पढ़ै

बै ओळी ही लिख भेजै तौ, म्है बांचां दोय घड़ी

स्रोत
  • पोथी : अंवेर ,
  • सिरजक : कल्याणसिंह राजावत ,
  • संपादक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर ,
  • संस्करण : पहला संस्करण