कई वरसं थ्यं

म्हारा मन मअें अतु

के म्हारा आंगणा मअें बी थाये

नानं छौरं नी रमझट, कादिरोल नै हाकहिक।

टाड़ी-मीठी गुल्पी खावा नी जद,

नेताजी ना होटल वारी कसौरी लाब्बा नी जद,

के पछै तण पइडा नी साइकल माथै फरवा नी जद,

कई’क वरसं थ्यं,

पण अैवू न्हें थई सक्यु,

जमारा ना डागदर ने मलक ना बावसी नी आकड़ी

पण म्हारे घर मअें

नाना-मौटा जैवू न्हें थ्यु।

स्रोत
  • पोथी : अपरंच ,
  • सिरजक : के. प्रेमी ,
  • संपादक : गौतम अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : अपरंच प्रकाशन
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