हे करतार!

तूं जठै जाड़ देवै

बठै चिणा कोनी देवै

अर जठै चिणा देवै बठै जाड़।

तावडै रा धणी

तूं जठै बाजरी देवै

बढ़ टाबरी कोनी देवै

अर जठै टाबरी देवै बठै बाजरी।

कोई अजोगती बात कोनी

आं बातां रो मायनो इयां लखावै

कै चूंच नैं तो चुग्गो मिल जावैलो

पण जे जाड़ घणा चिणा चाबगी

तो बा टूट जावैली

अर जे घणी टाबरी जामगी

तो बाजरी खूट जावैली।

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : महेन्द्र मील ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham
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