सुर फूटै अर बीखर जावै

धीरै धीरै पसरियोड़ी / जीयाजुण

जीयाजुण मायं सपना।

धीमौ मधरौ वाजतौ वायरियौ / तिरता-सपना।

तिरतै सपनां नै झालियोड़ा कळावंत

तिरता-फिरता / देस-दिसवारां मायं।

फरुकती ही उणांरी कळा री धजावां

छतीसां मुलका मायं।

पण टसकती ही उणांरी आतमा

रातींदै अर भूख सूं।

पांणी री पिणीयारी गावणियांरी

तिरसी रै जावती ढांणिया।

सुरीली सारंगिया / कोडीला कमायचा

बिकण लागता बीच बाजारां।

बाजार खरीद लीनी वै सारंगियां

अर बणगिया पारखू।

मरम समझणिया अजैई मरै भूखां।

रगड़का कोरा सारंगी माथै

गज सूंईज नीं लागै / हिंयै में घाव कर जावै

‘मरम’ अर राग रा रगड़का।

रगड़का इतियास रा / सदियां माथै।

रगडाका बाजार रा / सपनां री सांसां माथै।

सांसां अर सपना रा सुर

कद तांई झालिया राखसी सारंगी।

सारंगी जांणै पारखू हाथां रौ परस

खाडा खोदाणा नीं जाणै सारंगी।

कींकर बाजैला सारंगी ?

परस अर खाडां रै बिच्चै

पसरियोड़ै बाजार मांय।

म्हारा कलावंता!

थे तौ जांणता हा कोरी रागां

हींयै में पसरतै लोक री

जोवता हा आडियां जीयाजूण री

गूंथता हा रागां मायं मूमल रौ रूप

काचबियै मायं ऊर देवता हा

कंवळास अर दरद

थांरी सारंगी रा सुर

धोरां मायं उगा देवतै मीरां रौ मन

अर कबीर री काया।

थारी अरथ भरी ‘ककरियां’

भेद नीं करती राजा’र रंक रौ |

पण बाजार नीं जांणै / आंख अर हींयौ

वो तौ सीधौ गळौ टूपै सपनां रौ।

बाजार रौ

सपनै सूं कांई लेवणौ देवणौ?

पछै सारंगी कद तांई पाळसी सपना?

सारंगी कालै बाजै ही पटवां री हवेली आगै।

रगड़का हा उण माथै कोरा गज रा।

सपनां सूं बारै आयगी दीसै सारंगी।

सपना तौ ओळूंरा ईज आवसी

सारंगी सोधै ओळूं

अर ओळूं सोधै सारंगी।

सायत कदै'ई सपनौ जावै

घर-आंगण रौ।

स्रोत
  • सिरजक : आईदान सिंह भाटी