घोर सरणाटै मांय पड़ी

उणरी लास

उडीकै

पंचभूतां सूं मिलण सारू।

पण

स्यात उण रो कोई कोनी

जिण सूं कर सकै

उण री काया अरदास।

उण रै कानीं उठण वाळी

हर अेक संवेदना

खिण भर री है।

अरे भाई!

बगत किण रै कनैं है?

हां

चीलखा, कागला अर कुत्ता

जरूर बणासी

उणनैं आपरो भख।

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : हरिशंकर आचार्य ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham
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