हाथाँ सूँ फैंक्यो अंगीरो

ओराँ नं बाळतो

खुद भी दाझज्या छै!

ईरस्या को नाग पाळै

दूसरों के कारणै तो

फुफकाराँ सूं प्राणां मै भी

जहर फैलाज्या छै ऊ-

अरे, पण

मनख छै नासमझ कतरो

के दूसरों की राख पै

आपणा महल बणाबा का

सपना

लिया ईं ज्या छै

देख्याँ ईं ज्या छै॥

स्रोत
  • पोथी : थापा थूर ,
  • सिरजक : गौरीशंकर 'कमलेश' ,
  • प्रकाशक : ज्ञान-भारती प्रकाशन, कोटा ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण