दो टूक जवाब

ज्ये मल जातो

राजी अर बेराजी

हां अर ना को

तो क्हांमी होती काळी

हजारूं रातां

अर न्हं न्हाळणी पड़ती बाट

ऊग्यां सूं आश्यां तांई थांकी

पाछी आबा की।

पण बना बोल्यां

सुन्न सूं ही ख’ड़ जाबो तो

खटकै छै आठूं पहर।

आथण-सवार हो जावै छै

मन उदास

ऊं अणबोल्या अर अणदेख्या

अर बना कौल कर्यां गया

बटाऊ लेख

पंखेरू बी बैठै छै

डाळ पे

भूल्या-भटक्या

कदी-कदी

पण गजब ही कर दी

कोई दन आ’र पाड़ो हेलो

बुलावो हाथ को झालो दे’र

म्हंई घणो बढिया लागगो,

हो सकै थांई बी।

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : हरिचरण अहरवाल निर्दोष ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण