आम आदमी खातर

हर छिण आप ताई सिकरावणौ

जीवण विराज है

वो आपरी ही उधेड़ ने सींवे

हर औसर ने आपर मारफत

दूजां तांई सिकरावणो

वधतौ बिणज है

जिको जुग-जांमी ही जीवै

पण कवि पूरै जीवण ने

पूरण खातर सिकरावै,

बाधौ बिराज है

पाखरां री अमरता हो पीवै।

स्रोत
  • पोथी : मिनख नै समझावणौ दोरौ है ,
  • सिरजक : नारायण सिंह भाटी ,
  • प्रकाशक : पंचशील प्रकाशन