बादळी। थूं किकर बरसै इकसार?

आखी दुनिया झेल रैयी

भेदभाव री मार

घेर-घुमेर थे आयनै

किकर बांटौ सबनै

अेकसी जळधार

बादळी! थूं किकर बरसै इकसार?

ऊंच-नीच री बाड़ बणाई

ऊंचौ बणियौ

बणावण आळौ आप

च्यारूंमेर भोभर बिचरगी

गंडका पड़गी राड़

सबनै डरावण, थंबौ रोप्यौ

नांव दियौ करतार

बादळी! थूं किकर बरसै इकसार।

किण ईं रा फुलड़ां रौ

हार बणायनै हिवड़ै लगावै

किण ईं रौ हाथ लगाणौ

पौचौ कर जावै

आपरी देळी सूं काढै

काढै डंडा मार

मौन खड़्यौ तमासौ देखै

माटी रौ करतार

बादळी! थूं किकर बरसै इकसार?

अठै जामतां कोनी नीचौ

कोई बणै सिरमौर

किण रा चरण पखारीजै

किणी सुण्यां ना

दो मीठा बोल

भेदभाव री चाकी माथै,

पिस रैयौ संसार

बादळी! थूं किकर बरसै इकसार?

स्रोत
  • सिरजक : विवेकदीप बौद्ध
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