जीवण नैं सह तरसिया, बंजड़ झंखड़ वाढ

बरस अे भोळी बादळी! आयो आज असाढ

नहीं नदी-नाळा अठै, नहिं सरवर सरसाय

अेक आसरो बादळी! मरु सूकी मत जाय

खो मत जीवण बादळी! डूंगर-खोहां जाय

मिलण पुकारै मुरधरा, रम-रम धोरां आय

आयी घणी उडीकतां, मुरधर कोड करै

पान-फूल सै सूकिया, कांई भेंट धरै?

आई आज उडीकतां झड़िया पान’र फूल

सूकी डाळयां तिणकला, मुरधर! वार समूळ

सोनै सूरज ऊगियो, दीठी बादळियां

मुरधर लेवै वारणा, भर-भर आंखड़ियां

छिन में तावड़ तड़तड़ै, छिन में ठंडी छांह

बादळियां भागी फिरै, घात पवन गळ बांह

घूम घटा चट ऊमटी, छायी मुरधर आय

मऊ गयां नैं मोड़िया, मधरी गाज सुणाय

जळहर ऊंचा आविया, बोल रह्या जळकाग

देण वधाई मेह री, रह्या कन्हइया भाग

पड़ड़ पड़ण बूंदां पड़ै, गड़ड़ गड़ड़ घन गाज

कड़ड़ कड़ड़ बीजळ करै, धड़ड़ धड़ड़ धर आज

चालै पवन अटावरी, घिर-घिर बादळ आय

फुर फटकारां फांफ-रा, जळ ही जळ कर जाय

परनाळां पाणी पड़ै, नाळा चळवळिया

पोखर-आस-पुरावणा, खाळा खळखळिया

सूंई धारां ओसर्या, दूधां वरण अकास

रात-दिवस लागै झड़ी, सुरंगै सावण मास

तिरियां मिरियां तालड़ा, टाबर तड़ पड़ ताह

भागै तिसळै खिलखिलै, छप-छप पाणी मांह

लागी गावण तीज नैं, रळ-मिळ धीवड़ियां

गोगा मांडै मोद भर, टाबर टीबड़ियां

आभै तणियो धनख लख, टाबर आपोआप

मामै रो डांगड़ो, लागा कर धिणयाप

स्रोत
  • पोथी : राजस्थान के कवि ,
  • सिरजक : चन्द्रसिंह बिरकाळी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर ,
  • संस्करण : तीसरा
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