जद जद भी म्हैं
मन में पाळी इच्छावां
म्हारै आंगणै
झर्यो दिन
पतझड़ रा पात ज्यूं,
—अर रात
कीं करां बात
फूँफकारती रैयी
काळी नागण री भांत,
अर आसावां रा उतपात
उचकतां रैया
कुचमादी टाबरा री भांत
मन री कसूमल भोम में!
—म्हैं जद जद जतन कर्यो
पैड़ी पै पग देवण रो
हर बार पाड़ौसी
केकड़ा बण लूंबता रैया
अर म्हारा सपना
‘धड़ाम’ धरा पै पड़ बिखरता रैया!
—म्हैं जद जद
बसन्त उगाणों चायो
बबूल बावळो हुय’र
खा खरां नै खम सायों,
हुई आपणी औकत भूल
फैकतो रैयो फसली आन्दोलन
नफरत अर निसरड़ोपणो,
प्रीत भूखी भोम पै
अर म्हैं बुणतो रैयो
एक सपनो
बाथ-भर आकाश रो!