आ बात कोनी के बखत कोने म्हारा कनै।
बखत तो अतरो है के ऊँघतो रहेउँ हूँ दनभर माचा पे पड़्यो-पड़्यो
देख सकूं अड़े-भड़े गंड़कड़ा का हुच्या खेलता तका
दूर डूंगर के पाछे सूरज नै घरे जाते देखूं हूँ
उँदाळै-सियाळै की साख में हुयो मुनाफ़ा को हिसाब
जीवन मे हुयो हर घाटा को हिसाब राखू हूँ।
बैठो बैठो खँखारतो रहेउँ हूँ अठिने-उठीने
अतरी जागीरी को धणी हूँ पण
न दे सकूं कोई न आपण भड़े बेठबा की ठोड़।