थै जाणौ अर जाणां म्है ही, थांरै म्हारै कितरी बात

कुण कुण नै द्यां साफ सफाई, जितरा मूंडा उतरी बात।

दो हिवड़ां री हेत हथाई, जणां जणां री चढ़ै जबान

सळ नै सळ ही रैवण द्यो, अब तौ सारै बिखरी बात।

प्रीत रीत पथ मीत देखतां और देखतां हंस बतलाण

लोगां रै बधगी अबखाई, म्है तौ जाणा इतरी बात।

थांरै खातर तन मन वारां, धन सम्पत सूँ दे सनमान

पण थांरी नासमझी सूं हो, बीच बजारां बिकरी बात।

गळी गळी में बेळ कुबेळा, आणौ जाणौ है निरसार

समझां हां पण समझां कोनी, तो म्हारै नितरी बात।

मन में के मजबून देह रै दरपण में आज्यावै सार

ओलै छानै बात करां अर चोड़ै घाड़ै दिखरी बात।

थांरी नां सूं हुवै उदासी, थांरी हां, सूं हरख घणौ

थांरै निरखण री निजरां सूं नखरा कर कर निखरी बात।

स्रोत
  • पोथी : अंवेर ,
  • सिरजक : कल्याणसिंह राजावत ,
  • संपादक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर ,
  • संस्करण : पहला संस्करण