कोई कैयग्यो, कोई सैयग्यो

पण कोई बातां बोलतो-बोलतो रैयग्यो!

इण लुक-मिचणी रै खेल मांय

हरेक अधकिचरी बात साथै

जाणै कितरा दुख-दरद आपरै साथ लेयग्यो...

कोई समझग्यो, कोई अमूझणी लेयग्यो!

कोई तूफान रो रोळो सुण’र

बिनां बिरखा रै बैयग्यो..

फेर कोनी हो सकी बात पूरी

रैयगी, का छूटगी जिकी बातां

कदैई तो समझ जास्यां

सोच काटां रातां।

स्रोत
  • सिरजक : भारती पुरोहित ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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