बांठ : अेक 

भोळा बांठ
कित्ती सौरफ है
थांरी गोदी में
मगन है
सांप, गोयरा
टींटण ऊंदरा
लट- फिड़कला
करै कीरतन
अधरात रा
स्यांति सूं रो'ई में।
तूं कटै
सूंतीजै
पण नीं राखै आंट
भळै पांगरै पड्यां छांट।
करै चेतन
चूलहौ मिनख रो
काळ-दुकाळ- त्रिकाळ
सगळा बगै ऊपरियां कर
तूं नीं निवै
नमो है तनै बांठ।
जूण रा पगफेरा नीं
पण मून साधना

सिरजै जूण
निंवै देई-देवता
बांठां में थारै
न्हाखै सिसकारा
उन्याळै-सियाळै
तपै बळै
भळै
थरपै जूण थार में
मा जायां सारू
कद जाणै सहोदर थारा।


बांठ : दो

तपै तावड़ै
डील में उठै गांठ
पण पग पाछा नीं देवै
मुरमोबी बांठ।
लरड़ी-छाळी
चूल्हां नेड़ी करै
मिनख डाळी-डाळी
तकै आभौ बधै ओरां मिस
जड़्यां भरवै
सरणांगत दीवळा
नी तोड़ै मून
टोरै जूण।

मुरधर सूं
पाळौ हेत
करै निछरावळ
परहित डील तापै रेत
पण रै 'वै निरमळ
पाळै प्रीत
खोलै गांठ
आंट री नीं दरकार
छांट री-मेह री
रै'वै फगत
नेह री।
स्रोत
  • पोथी : थार सप्तक (दूजो सप्तक) ,
  • सिरजक : प्रहलाद राय पारीक ,
  • संपादक : ओम पुरोहित ‘कागद’ ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन