अठै तो राणा जैड़ो सूरवीर कठै

माटी वास्ते मरे ओड़ौ वीर कठै

जिणरी हूंकार सूं मुगल थरथरायौ

चेतक री छलांग सूं दुसमण घबरायौ

सूरवीरा रा गुण चारू मेर दिखता

राणा रौ बाल बांकौ कर पायौ

मेहल छोड़ वन में रैवणिया वीर कठै

अठै तो राणा जैड़ो सूरवीर कठै

जिणरै आगै अकबर जैड़ा डरता हा

सगळा सीस उणरै सामी झुकता हा

जिकौ भालो अर तलवार सूं लड़तो

आपणी मायड़ भौम खातर मरता हा

मूंछा में मरोड़ राखणियौ वीर कठै

अठै तो राणा जैड़ो सूरवीर कठै

वन वन भटकिया रोटी घास री खाई

सुख चैन सूं नीं बैठा नीं नींद पाई

गुलामी री बेड़ियां कदै नीं बांधी

बल साली सूं हल्दीघाटी हरसाई

नित रूखवाळी करणियौ रणवीर कठै

अठै तो राणा जैड़ो सूरवीर कठै।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : दीपा परिहार 'दीप्ति' ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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