माणसबणणौ चावै-
हरिचंद आज रौ आज
पण
लावैला कठा सूं
अंतस में-
ऊजळी सतवाळी आवाज।
माणस!
थूं थारौ
जीवण जी सकै
झूठ रै झणकारै
तो क्यूं आफळै?
फगत
दुनिया नै दिखावण
साच रै
असेंधै उणियारै।