दिनूंगै पैली देखूं

थांरौ मूंडौ

थारै चैरै माथै जखम

थैथड़ीज्या

रगत अर पीप।

विडरूप

दाय आवै किणीज नै

अर थूं बणै विलम

बणै जगचावौ

चटखारा लेय'र चाटै थनैं

दरसावै हियै तणौं नेह

क्रोड़ां मिनख-

विहाणैं।

आरसी तौ है थूं

मिनख समाज अर देस रौ

सगति बणै निजोरां री

खाल उधेड़ै मिनखां री-

जका में आसरौ

भेड़िया-स्याळियां रौ।

रचणियो दीन्ही

अेक दिन री उमर

पण नित रा लेवै थूं

नूवां जलम

दरसावै नूवां चितराम

थूं सामटै सगळी झ्यांन

अणछेह थांरौ विगसाव।

न्हाख दे तांचा हेत

बण थूं लाडेसर...

सांचलौ चोथौ थांबौ।

स्रोत
  • पोथी : थार सप्तक (तीजो सप्तक) ,
  • सिरजक : राजेन्द्र शर्मा 'मुसाफिर' ,
  • संपादक : ओम पुरोहित ‘कागद’ ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन
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