आखै जग में

भटका मारियां पछै

अेक बात समझ में आई के

हरेक री दुनिया

खुद सूं सरू होवै

अर अंत-पंत

खुद रै माथै पूग’र

खतम हो जावै।

स्रोत
  • पोथी : जातरा अर पड़ाव ,
  • सिरजक : श्यामसुंदर भारती ,
  • संपादक : नंद भारद्वाज ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम