ई खरू है, के—
तू हवणे नानो है
ई भी खरू है, के—
हवणे तारं पांकड़ं कासं हैं
म्हूँ मानू कै—
तने अजी पूरू-पादरू उड़ता ए नती आव्यू
पण —
तू मन नकै मार
साती कासी नकै पाड़
ते होण्यू ते वेगा
गोड़ं मानवीयं ने मोड़े, के
पाणा में पण कापो पड़ी जाए
रांडूवा ने घसारे घसारे।
वारी ले गांट आ वात!
मन नी लगन ने जीव नो जतन
कारे अवरता नैं जाए।
फेर ई दाड़ो सेटी न ती
के तू, शारे खोटं नापेगा
नकै नानू करै मन नै
घणं अंगास औंसं है
अंगास घणं औंसं है।