(अेक)

बूढी ठेरी में
अचाणचकै इज
किंया बापरगी ज्यान
बण्या राह छोड़’र
चाली उझड़
खेत, खळां
गाँव-गुवाड़ में
डाकण दांई
हांफळा मारती नै देख’र
गाँव रा बडेरा
साची केवै हा
आ तो आंधी है।

(दो)

आंधी रूस'र
घर सूं निकळगी बारै
धक्का खांवती फिरी
घरां, खेतां अ'र गुवाड़ां में
कण ई बतळाई कोनी
बूढी सासू नै लारै-लारै
ढूंढण आई बिरखा बीनणी
सगळा कोड कर'र बोल्या-
आ थोड़ी ताळ म्हारै घरां बैठ।
स्रोत
  • पोथी : थार सप्तक 6 ,
  • सिरजक : हरीश हैरी ,
  • संपादक : ओम पुरोहित ‘कागद’