कितनी हो ऊंडी होवै मावस
थरथरा जावै छै ठेठ तांई
दैळ पै कळपतां ही एक दिवलो...
रचबा हाळा रचलै अनगिणती पड़पंच,
मारीच की माया कदी न्हं मांड सकै
छेकड़ली जीत का चितराम
सद् का साथी आवैगा जद आपणीं पै
भळस द्यैगा रागससां की राजधानी
अर सच का सारथी तो बिराजैगा ही पुष्पक विमान पै।
धीरज धर!
काळजयी न्हं हो सकै कोय अंधारो,
मन कै तांई खंगाळ
तो बिखर ज्यावैगा च्यारूं मेर उजास का कण,
अर ये कण बीणती बगतां
बिसर ज्ये मत नूंतबो परस्या पांवणा।
याद रखाण
थारा बारणा पै दिवाळी ऊं बगत ही मुळकैगी
जीं बगत बांटबा सीख ज्यावैगो तूं बांटबो
आपणी पांती को उजाळो आपणां कै तांई
अर परायां कै तांई भी।