फेर आऊंला

किणी दिन

अणाचेत

जिण गत

आवै है

बांसवन में बसन्त

बियां तो कानोंकान

खबर नहीं व्है

किणी नै

पण गंठ-गंठ

बांस रा बांसरी

बण जावणौ चावै

बायरौ राग नै

उळीचै सौ-सौ हाथां

रंग नीं मावै हाथां-बाथां

अर तूं चहकवा लागै

फेर किणी डाळ माथै

दिनूगै सूं

संझ्यां तांई

लोग पूछै

कांई व्हियौ

क्यूं बिरथा कूकै है?

तूं अणमणी कै’र

आभै कांनी जोवै

जिण गत जोवै है

आंख्यां

किणी अणाहूत

पांवणै रो मारग।

स्रोत
  • पोथी : बिणजारो पत्रिका ,
  • सिरजक : भगवती लाल व्यास ,
  • संपादक : नागराज शर्मा