आंबौ फळग्यौ रे कोयलड़ी समझ गई बात

चिड़ियां चहक चहक चरचावै, फैल गई बात

आंबौ फळग्यौ रे।

बदळ गयौ रंग रूप बदळगी भासा सगळी

पंथ-पंथ पगडंडी सारै, कह देवै बात

आंबौ फळग्यौ रे।

सौरम सीनौ ताण नीकळी, मदगाफल डोलै

डाळी डाळी सखी सहेल्यां, बतळावै बात

आंबौ फग्यौ रे।

कितरी इतरी इतरी तितली, गरणावै चौफेर

डोड़ डोड़ में डौढ़ कागला दुलड़ावे बात

आंबौ फळग्यौ रे।

माळी रै मनमोद बाग री साख सांतरी है

छानै छानै कनबतियां में कुण कैवै बात

आंबौ फळग्यौ रे।

सुणै सुवटौ मैना बांचे, पाती प्रीत लिखी

बायरियौ बळतौ कळझळतौ कह देवै बात

आंबौ फळग्यौ रे।

स्रोत
  • पोथी : अंवेर ,
  • सिरजक : कल्याणसिंह राजावत ,
  • संपादक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर ,
  • संस्करण : पहला संस्करण