म्हनै हर बार सोची
कै यो कुँण छै जो देवै छै दस्तक
भोर होता ई धीरा सूँ बजा दै छै किवाड़
अस्याँ तो म्हारै पास आवै छै दुःख
अर म्हारो मन बैठ जावै छै
अगर म्हूँ करवट लै’र सो जाऊँ
तो बी छानोमूनो ऊभो रहै छै किवाड़ कै पाछै
अर बाट नाळै छै म्हारी भोर होबा की
म्हनै कैई दनाँ ताँई ई का डर सूँ किवाड़ नं खोल्या
अर बाट नाळी ऊ कै जाबा की
पण ऊ ग्यो कोईनै
साँझ होता ई ऊ कै ताँई कोई और ले जावै छै
ऊ ज़ोर ज़ोर सूँ चिल्लावै छै
म्हनै रोकल्यो ! म्हनै रोकल्यो ! म्हूँ काल नं आऊँगो !
अर होवै बी यो ई छै
काल कोई और आ’र किवाड़ बजावै छै
अलग अन्दाज़ में धीराँ सूँ अर साँझ होता ही फेर चीखै छै
म्हूँ अकसर सोचूँ छूँ कै किवाड़ खोलूँ अर देखूँ ऊ नै
बात करूँ ऊ सूँ एक बार
बिठाऊँ आपणा पास
एक दन म्हनै वा ई करी
ऊ का आबा सूँ प्हैली जागग्यो
ऊ आयो अर किवाड़ बजायो
म्हूँ उठ्यो अर किवाड़ खोल्यो
देख्यो तो अख़बार छो
अर म्हारो मन बैठग्यो।