आखर पैलपोत करुणा रा घूघरा बांधै!

जद जाय’र कवि रै मन कविता राचै!

आखर खुद नै देखै,जोवै,निरखै अर परखै!

आखर पैलपोत प्रणव रो नाद गावै!

आखर पैलपोत आस री अभिव्यक्ति बणै!

मेळां मांय गम्योड़ा अपणै-आपनै ढूंढै!

आखर कदै हंसै,कदै रोवै,कदै विद्रोह नै परवाणै!

आखर पैलपोत अन्तस् री खिमता तोलै!

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : अनिता सैनी ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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