सूरज

लपत री उगाळी सायै

लू री अखबाई सूं

बे-हवाल जणो-जणो,

करसो अर सांसर

जोवै आभो

कदास मेह री मेहर

हुय जावै।

भूखा-तिरसा डांगरां री

सूनी आंख्यां

डरावै म्हनै

जो बिरखा नीं आई

तो म्हारो अर सांसरां रो

कांई हुवैला हवाल।

बिरखा रूसगी

अर बहीर हुय’र पूगगी बठै

जठै पैल्या सूं

घणी है बिरखा।

अणचाही बिरखा सूं

बठै रा मल्लाह

नदी अर न्याव रो

धीरज निवड़ग्यो अर

अतिव्रिस्टी सूं

पड़ग्यो है काळ बठै।

स्रोत
  • पोथी : कीं तो बोल ,
  • सिरजक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राष्ट्र भाषा प्रचार समिति श्री डूंगरगढ़