म्हनैं थरप्यो थे
भाठो
थारै मान-सम्मान रै खेल धकै
भर दी म्हारी मांग में
सईकां री उडीक
म्हैं सतवंती ही
अंतरजामी नीं
कै परख लेवती
मनमेळू री काया में रम्योड़ै
कपट अर वासना रै डीलगत स्वांग नै
म्हारो समरपण तो सांच हो
प्रीत रो सास्वत रूप
स्खलित तो इंदर हुयो
पण ढोवणो पड़्यो
पाप रो भारियो म्हनै अेकली नै?
कुण रचिया औ विधान
कुण घड़िया सुविधा रा न्याव?
लूंठै री लाठी धकै
सजा फगत स्त्री नै?
शीलभंग इंदर रो होवणो हो
पण थांरी ताकड़ी तुलीजी म्हारी प्रीत
म्हारो विस्वास
म्हारो साच!
क्यूं नीं करयो थे म्हां पर भरोसो
अणसुणी कर दी आंसूड़ां री अरदास
थे तो अंतरजामी हा
क्यूं नी राख्यो
प्रीत रो पतियारो
ग्यानी हुंवता थकां ई
माडाणी मीच आंख्यां
ऊभा हुयग्या
मरद रै साथै
परायै मरद रै परस रो दंड
मिटैला परायै मरद रै परस सूं ही
जबरो दंड विधान हाकमां!
धिन्न-धिन्न!!
परायां नैं सूंपतां म्हारो भाग
सै सूं पराया
थे हा गौतमजी
अहल्या तो फगत खिलौणो ही
मरदानगी सारू
परायै मरद भोगी
अर परायो ई तारसी
इण कळंकित सईकां में
मान नीं घट्यो देव इंदर रो
म्हैं भोगी पीड़
ठोकरां रुळियो म्हारो मान-सम्मान
प्रीत-हेत
थे धरी म्हारी पिछाण अर ओळखाण
गैर रै पगां मांय
मुगती सारू स्यात
डरता हा म्हासूं
या मिस मान्यो
थे राम-किरपा पावण रो
थे थरप दी थांरी (मरद) सत्ता
विचार
चेतना
ग्यान
प्रश्न पूछण री हूंस माथै
पण काळजै धरिया भाठा
कसमसीजै
चेतना रा भाखर हुसी
ओज्यूं चेतन
नीं जोवूला बाट किणी राम री
म्हारी मुगती सारू
अहल्या प्रगटसी
मतोमत आपरै भीतर सूं
ज्यूं चट्टाणां मुळकै पुहुप
भीतरलै राम पाण।