म्हारै सांवठै मन मांय

धपड़-धपड़ उठी

झळां होळी री

जिणां में

कूड़-कपट ही होळका

लेयनै बैठी

प्रेम अर

प्रीत रै प्रहलाद नै!

धपड़बोझ मांय

वरदान री ओढणी

लिपटगी

प्रीत रै प्रहलाद री

पळकती देही सूं

राख हुयगी होळका

जिण मांय

मुळकै हो

प्रीत रो

गहरो रंग,

जको जळ्यो नीं,

बळ्यो नीं।

भीज्यो रैयो

थारी प्रीत री

पळकां माथै पळकतो!

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : वत्सला पांडे ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य संस्कृति पीठ
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