कविता

निपजा नीं सकै धान

भर नीं सकै पेट

किणीं भूखै रो

बुझा नीं सकै

काळजै री आग

नीं बरसा सकै

धपटवां पाणीं

दे नीं सकै सांस

तो भळै क्यूं है कविता

क्यूं रचूं म्हैं कोई कविता।

आज म्हैं

भळै विचार् ‌यो

नीं लिखूंला कोई कविता

सबद पण भेळा होय

कर न्हाखी हड़ताल

म्हारै मगज रै आंगणै

म्हैं लुकणों चायो

भीतरलै गुम्भारियै

लारो नीं छोड़्यो म्हारो

राता माता सबदां

बगनो होय म्हैं

झाल में बोल्यो

परै दूर हटो

म्हारी निजरां सूं

अणमणां होय टुरग्या सबद

जांवता पण झलाग्या

म्हारै हाथां में कलम

बोल्या

थूं इयां कांईं करै।

स्रोत
  • पोथी : चौथो थार सप्तक ,
  • सिरजक : संजय पुरोहित ,
  • संपादक : ओम पुरोहित ‘कागद’ ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन
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