सुण खेजड़ी

थूं मुरधर जाई

बैन ज्यूं लागै

जाणैं है मा जाई

अब पण दिखै

रिंध रोई में

थांरा निरा ठूंठ ठूंठ

स्यात भखग्यो काळ

का भखग्यो मानखो

नीं है अब

लोई सूं पाणत करणियां

कोई इमरता बाई

जिकां होम दी जूण

जाण’र थांरो महत्त

अब यूं खुद साम्भ

थांरो मरुधरी तत्त।

स्रोत
  • पोथी : थार सप्तक 7 ,
  • सिरजक : अशोक परिहार 'उदय' ,
  • संपादक : ओम पुरोहित ‘कागद’ ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन
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