छायां मानों घूंघट काढै जाय तावड़ो दूर जी।

सांझढ़ली री मांग में सूरज भरै सिंदूर जी॥

झालर बाजैं देवरै रूंखां पाखी आवैंजी।

धूल चढै गिगनार मं पाली राझ्यो गावैं जी॥

सिर पर घास भरोटिया गीतां रो रमझोल जी।

आवै घूमर घालतो नणद भुजायां रो टोल जी॥

हुकै री धूंआं उड़ावता आया करस्या और मजूर जी

सांझड़ ली री मांग में सूरज भरै सिंदूर जी

हरे रूंख पर सूअटा कागा सूखी डाल जी।

खुर सूं मांडै माडणा गायांरा लंगार जी॥

थम थम काडै तापड़ा टोरड़िया अलोल जी।

टींगर खेलैं गोखै बूढा बैठ्या पोलजी॥

धण नं फिरै रिझावतो लाम्बी पांखों रो मयूर जी

सांझड़ली री मांग में सूरज भरै सिंदूर जी

चरखो मेल्यो ओबरै तुलसां जोयो दीयोजी।

गीत सांझ रा गावतां हरख मनावै हीयो जी॥

बहू का नैण उतावला रै रै बाअर झांकै जी।

चमकै मुखड़ौ, चांद सो, बलद घूघरा बाजैं जी॥

लाज सतावै सास की पण मन बैरी मजबूर जी।

सांझड़ली री मांग में सूरज भरै सिंदूरजी॥

स्रोत
  • पोथी : मोती-मणिया ,
  • सिरजक : महावीर प्रसाद शर्मा जोशी ,
  • संपादक : कृष्ण बिहारी सहल ,
  • प्रकाशक : चिन्मय प्रकाशन
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