मुळकै कंचन कामणी, ओढ़्यां हर्‌‌यौ दकूल।

जांणै धरती ऊपरै, खिल्यौ कंवळ रौ फूल॥

पीळा गेंदा बाग मंह, पीळी सिरसूं खेत।

मंहदी पीळा हाथ है, पीळौ तन-मन हेत॥

देख कटी कटि ओज उर, अतरी मत ओमाव।

गळसी रळसी यौ बरफ, कर कर भारी पांव॥

साळ क्यूं साड़ी मंह घणा, बिखर्‌या सा क्यूं बाळ।

पूछ म्हनै मत हे सखी, कहसी रातां गाल॥

स्रोत
  • पोथी : मोती-मणिया ,
  • सिरजक : सिव मृदुल ,
  • संपादक : कृष्ण बिहारी सहल ,
  • प्रकाशक : चिन्मय प्रकाशन
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