हाकाहूक री हाट माथै बैठ

नित सुरजी नै बेच आपरी नींद

आखी-आखी रात जागै मिनख।

सोवण रौ सांग करै

घड़ै में कूंची भर्यां पछै

पाड़ौसी ने जगावण री कैवै।

ऊगै दिन

चाय उबास्यां पसवाड़ा

छेवट हड़बड़ा' फेंकै पछेवड़ौ

फाटी-फाटी आख्यां सूं निरखै

सांप री छतरयां दांईं

छाती ऊगी टाबरां री टोळी नै

काच में मूंडौ

सवाल-जबाब अपणै आप सूं

हाथ-मूंडा तौ धौया हा कालै

ठंड में नित न्हांरणौ ठीक नीं

वीयां ईं जुखांम होयोड़ौ।

तौ आफिस जावण में

आध घंटै रो मौड़ौ

कांईं व्है

साब तो खुद लेट आवै भोड़ौ।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : सुरेस पाटीक 'ससिकर' ,
  • संपादक : तेजसिंघ जोधा
जुड़्योड़ा विसै