गांव-हवाबाजां रै

बखाण री चौक्यां हुयग्या

गांवैड़ी पिचक्योड़ा ढोल

हवाबाजां रै टाळ कुण करै मोल

हवाबाजां फूंक भरै गांवेड़या में

क्यूंकै मिनख-मिनख में

राजनीति री चेतना

घणी जरूरी हुवै

बडिया ऊभी अचूंभो करै

कांईं सांगो हुयग्यो

किसो'क जमानो आयो

लड़ाई रो भानो

आंगो हुयग्यो

पांणी तो पेलां पींवता

तिरसा नीं मरणा

सगळा जीवता

तोड़ो पैली भी हो

फोड़ो अबै भी है

फरक बस इतो कै

पैली पाणी रो हो

अबै मिनखपणै रो

हथाई रै चौफेर

चिलमां रै गोट में

खींवो-बीझो, ढोलो-मारू कै खापरियै चोर री बात

हेंसी रै खळखळाट में सतपोरी रात

यूं कटती जाणै

नूँवै दांता री दांती सोराई सूं

काटती हुवा कड़बी

अबै तो बस अड़बी अड़बी

तंबाखू बिती भूंडी नीं हुवै

जिती कै हतायां में

धूंई रे बारै-बारै

बंटती अटकळां

जावो बजाद्यो

गळी-गळी, घर-घर री खटकलां

'कुण हिन्दू नीं है

कुण मुसलमान नीं है'

गांवेड़ो अबै गांवेड़ी नीं रेवैला

हिन्दू कै मुसलमान हुवैला

गांव रै टाडै में गोर्यां परणीजैला

मुसळमानां रो कांई काम

ताजियां रै मेले में हिन्दू

क्यूं खरचै दाम

अे आपां रा नीं

आपां आरा नीं

कबीरो गेलो हो

ठाह नीं हिन्दू हो कै मुसळमान हो

नापाक पतो नीं किण रो चेलो हो

अेकल करणो चांवतो

उण टैम भोट नीं पड़तो

नींतर सड़तो

रसखान भी अेड़ो हो

उण में कृष्ण रो चेड़ो हो

पण अबै कोई बात रो डर नीं है

घर-बो घर नीं है

जठै सगळा अेकी हांडी रो

खीच जीमता

सांवण में अेकै हींडै हींडता

दिनूगै उठतां भंवरु खां

भंवरलाल नै ओपरी निजरां सू देखै

दोनूं अेक बीजै नै खौफ री

निजरां सूं पेखै

म्हारै गांव रा पिचक्योड़ा ढ़व्बूड़ा

अेक ही थैली में रैंवता

हवाबाजां भर भर नै हवा

न्यारा-न्यारा कर दिया

हवाबाज खोदैं न्यारी-न्यारी खायां

थे म्हारा भायां

पड़ जावो उंधो मुंहडो कर’र

थांरी पीठ माथै

झंडा रुपैला

बाकी बंच्योड़ां खातर

डंडा बंटैला

बिना भैली आपस में लड़ता रैवो

राग-रस-रंग—तीज तिंवार

अे सगळा बैवार

किणी अेक जात रा नीं हुवै

झगड़ो—तो झगड़ो भूख सू

झगड़ा किणी बात रा नीं हुवै

भूखै-तिरसै भंवरु खां अर भंवर लाल री

लड़ाई रो मुद्दो नीं है धरम

है तो बस कारज करम

कै दोवूं सिंझ्या तांई

भाज्यां पछै भी धाप’र

रोटी नीं खाय सकै

हवाबाज जाणै

भूखै पेट मिनख नै रीस आवै

अे दोवूं भूख री बात

समझ नीं जावै

बस इण वास्तै दंद-फंदं करै

वांनै कांई लेवणो कै भंवरु खां नै भंवरलाल

भरी जवानी में जीवै कै मरै

पण दोवूं भंवर म्हारै गांव रा

सपूत है

थांनै म्हारा बीरां जीवणो है

सागै कमावणो है, सागै जींमणो है

किरसाण मजूर री नीं हुवै जात

समझण री इत्ती है बात

हथायां बिचली धूंई रै

झळझळता खीरां में

रोटी ओटो

मिनख-मिनख री बोटी नीं।

स्रोत
  • पोथी : सवाल ,
  • सिरजक : चेतन स्वामी ,
  • प्रकाशक : राजस्थान प्रगतिशील लेखक संघ, जयपुर ,
  • संस्करण : 1
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