कठी चाल्या पटैल जी?

जीमबा!

दूरो हट्

भट जे मत..!

खम्मा, घणो खम्मा पटैल जी!

हटूं छूं,

पण जीं बांस की छाबड़ी मैं

परोसगारी होवगी,

वां भी तो म्हारा अछूत हाथां सूं

बणी छै।

स्रोत
  • सिरजक : प्रेमजी प्रेम ,
  • प्रकाशक : कवि री कीं टाळवीं रचनावां सूं