घणा दिनां सूं

कोरा कागद माथै

कांई नी मांड सक्यौ

मांडतौ भी कांई

संवेदना ईज नी जलमी ईं मन में।

घणा दिनां सूं

ईं सून्याड़ जीवण में

मुळक ईज नी वापरी

हंसतौ भी कियां

कोई उछाव ईज नी रैयौ ईं तन में।

घणा दिनां सूं

पेट-भर नै खाणौ नी मिल्यौ

खावतौ भी कियां

बखत ईज कोनी ईं धन में।

घणा दिनां सूं

दरकियोड़ी जमीन माथै

लीलोती दीखी ईज कोनी

ऊगती भी कियां

बरस्यौ ईज कोनी ईं बन में।

कांई विरोधाभास

मिटैलौ कोनी

अबखापणौ

ईं जीवण सूं हटैलौ कोनी।

स्रोत
  • पोथी : अपरंच राजस्थानी भासा अर साहित्य री तिमाही ,
  • सिरजक : शिवराज छंगाणी ,
  • संपादक : गौतम अरोड़ा