आभै रौ नींवणौ

मन्नैं भलौ लागै,

उण री बात

म्हैं समजूं —नीं समजूं

कुण जाणै?

म्हैं अर आभौ

अेक-दूजै नैं बतळावां

अर पूछां

हाल हुवाल आपस रौ

कै चांद अर सूरज री

दरकार है दोनां नैं

धरती सूं हेत करणौ

आपणौ हुवै है फरज!

आभै सूं होंवती बिरखा

चिमकती बिजळ्यां

अर गाजता बादळ

धरती रै साथै

बधतै नेह रौ करावै दीठाव

आभौ, धरती अर म्हैं

करां बतळावण अर

पूछां हाल हुवाल आपस रौ।

स्रोत
  • पोथी : अंवेर ,
  • सिरजक : श्याम महर्षि ,
  • संपादक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण