आयो बैरी बुढापो यो दिन-रात सतावै
है हुयो हाड पिंजरा सो नहीं साथ निभावै है
आंख्यां ये करै झिलमिल हाथां में जोर नहीं
अबै चाल हुई लड़खड़ यादां कमजोर घणी
कानां सूं भी अब तो घणो ऊंचो सुणावै है
भण लिखनै छोरा भी अबै बाबू ये बणग्या
कोनी टेम मिलवा नैं जद सूं बै पनपग्या
घणा रोग पड्या पाछै, जीणो नीं सुहावै है
है साथै सगळा ई पण फेरूं ई अकेला हां
छोरा-छोरी पोता सब नाता स्वारथ रा
हिवड़ै री कोण सुणै, आंख्यां ई भर आवै है
क्यूं भूल्या सगळा ही अेक दिन यो आवैला
जो करयो कुमुदिनी थे उणरो फळ पावैला
जद छळ आपणा ही वृद्धाश्रम खुल जावै है
आयो बैरी बुढापो यो दिन-रात सतावै है
हुयो हाड पिंजरा सो नहीं साथ निभावै है