म्हैं देख्या केई 
मिंदर-देवरा 
ईण्डा चढतां 
प्रतिष्ठा होंवता 
बोलियां लागता 
उच्छब-हवन होवतां 
पण 
दूजै ई दिन 
नीं निकळतौ 
फूस 
नीं होवती 
अगरबत्ती। 
 
                 
                
                    
                        स्रोत
                            
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                                        पोथी : राजस्थली मार्च-जून 1996
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                                        सिरजक : राणुसिंह राजपुरोहित
                                            ,
                                    
 
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                                        संपादक : श्याम महर्ष
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                                        प्रकाशक : राष्ट्र भाषा हिन्दी प्रचार समिति, श्रीडूंगरगढ़ (राजस्थान)