तल़तल़ीज्या तल़तल़ाटै सूं

हल़फल़िया

डरिया -घिरिया

आकल़ -बाकल़ होय

थकतां -थकतां

तकतां -तकतां

जोय लियो एक आसरो!

गांव रै गवाड़ में

घेर घुमेर ऊभा

आभै सूं बंतल़ करता

पूगोड़ा पंयाल़ां पग

बडला अर पींपल़।

बणा लियो आल़खो

तिणका -तिणका चुग

उणां रै सिखरियै डाल़ै

पण नीं मिल़ियो

एक अडग आसरो

नीं संचरियो सास सोरो

क्यूं कै

धीमै -मधरै वायरै रो ऐसास

आल़ै री ओट रै विश्वास

मीठोड़ै गल़वै गावण

अर

बतावण सिखरियै डाल़ै री इधकाई

आसरै री बधताई सूं पैला

खिंडग्यो आल़ो

निकल़गी पोल!

सुल़्योड़ा हा बडला अर पींपल़

हरियाल़ी?

हरियाल़ी !तो फगत धोखो ही

क्यूं कै

बै खुद ऊभा हा

पड़ूं -पड़ूं होयोड़ा

जड़ां तो ऊभी ही रजकणां माथै!

लागै हा डगमगता सा

तोड़ता दिन दूजां रै सारै

पछै

कीकर देता किणी नै

थिरचक आसरो?

सुख वासरो

सोरै सासरो रो ऐसास

जका खुद थोथा हा मांया सूं

ठौड़ -ठौड़ हा खोगाल़!

छेकला छाती में

लागोड़ी उदैई जड़ां में।

ऊपर दीखण वाल़ी

लीलीछम हरियाल़ी

साव कुड़ी ही

माल़ीपाना सूं ढक्योड़ी!

देवण नै बुत्ता

थथोबा

आपरै मोटापणै रा

हणै रा हाल लुकावण नै

अधरबंब उडतै

फड़फड़ातै पंखियां नै

आगै सूं लुभावण नै

कूड़की धजा फरूकावता

ऊभा तोड़ै हा दिन

मोटैपणै रै भरम में

शरम रा मारिया।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणयोड़ी ,
  • सिरजक : गिरधर दान दासोड़ी