तमें घणूए को, कै —
कएंक कर, कएंक कर
पण करूं ते हूँ?
मारा मन नी मईसागर नू
हेत्तु पाणी हुकाई ग्यू है
ने रई गई है थाकेला नी रेत
ने
तवालतं ना पाणा
हरते तरावुं एणां मएं हपनं नी हुड़िये (नावें)?
ने हरते उगाडूं हरख नी हार?.....
हरते....??
पण फेर भी—एणी रेत अने पाणं ने वेसे
ज्यां त्यां पोइया काड़ी रई है
आस नी दरोकड़ी
बस! एणां थकी स् उपजावी लऊंगां
एक आक्का जमाना नी हरा
केम के—
दरुकड़ी ने पोइयं नी आस
ने तमारो विसवास
मारे हाते है,
पसे फिकर नो क्यं वास!