मोटो बोर
गोल मटोल
गोरो निचोर
मीठो गटू’क
लाल चुट्टु
मुंडो काढ़ै
पत्तां ओलै
इन्नै झांकै; बुन्ने दिखै
टाबर बोलै—
“बा! देख: बा घूढाक”!
टाबर—टींगर भेला हुग्या
भाटां का सहीड़ उपड़्या
बूढ़ा—बडेरा सागै बोल्या—
“एक घाघड़ै खातर भाया
कत्ती’ क खोपर् यां भच्चीड़ उपड़्यां”।
गेलै बगतां कैई कियो—
“आछा फूट्या थांका भोगना”।
कैई! टींगर घणां कूटीज्या
कैई’ लुकग्या
कैई! कियो “म्है हा कोनी”!
कैई बोल्या—“बो! हो सांगण”
पड़्या खल्ला
खाल कूटी जी
खैर! सल्ला!
घूढाक बोली—
“सुण ओ! टाबर
आपो औलख
बूत्तो जांण
दिनां गैल तूं
खुद नै पिछांण
दिन आयां—
“तूं! ही घूढ़ाक बण ज्यासी”।