बादळ रौ कोनी बूतौ

जकौ रोक सकै

सूरज री उगाळी

पण अेकर तो

फिर जावै उणरै आडौ

कराय देवै सागै

चांद नै चेतौ

अर आपरै आपै रौ अैसास

बरसण कै

बिखरण सूं पैलां।

हाथी रै लारै कुत्ता

क्यूं छोडै आपरौ कमतर?

कीड़ी सूं कांपणियौ

अवस व्हेतौ व्हैला

कुत्तै री भुस सूं भयभीत,

थोथौ अर थुळथुळ है

उणरौ मदमातौ विचरण।

कोई पण कोनी

इण खोड़ रौ खौड़ीलौ सिंघ

रिंधरोही रौ राजा

हाथी तो हाथी

गादड़ां आगै भाजता देख्या है सिंघां नै

ऊगै सूं आथमै

जलमै सो मरै

इणी मूळ-मंतर रै मत्तै

मिनख नीं देवणौ चावै

आपरौ माजनौ

पण—

चरभर री चालां आगै

उकरास लगावण री उमंग रै आंटै

बगतसर बतावणौ पड़ै

आदमी नै आपरौ मादौ

आपरी औकात

जलम रै पछै कै

मरण सूं पैलां।

स्रोत
  • सिरजक : शंकरसिंह राजपुरोहित ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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