आँक में उतरी आवीं अरू—

आँक थकी पड़ता अरू नं

नै गणंए टपकं

केमके

आँक मईशागर है

मैं मईशागर मैं हेरतै गणएं टपकं।

अेट्लू खरू है के

आँक नैं मईशागर

बै बणाव्य दैवताए

नैं देवताए भरयू

मईशागर नूँ पाणी,

पण केणै भरयू

आँक मे पाणी!

जाणूं हूँ जाणू

गणं कोतुक करें

मारे आए-पाए वारास

मारी आँक में पाणी भरवा।

मूँ बस जोवू नै पीयूँ

मईशागर नें पाणी

आँक पाणीं।

स्रोत
  • पोथी : वागड़ अंचल री राजस्थानी कवितावां ,
  • सिरजक : शैलेन्द्र उपाध्याय ,
  • संपादक : ज्योतिपुंज ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham
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