धरती माथै पसर्‌योड़ौ

हद काळौ काळ।

अंबर रौ मुळकंतौ

रूप नीं सुवावै,

भूख रा भाग लड़ै

चैन कियां आवै,

मौसम रा मूंडा में

अणमाती गाळ।

चारूं मेर मून रा

बैवता सरणाटा,

प्रीत बावळी रा

बोल घणा खाटा,

धुप्प अंधियारौ

ऊंघै है साळ।

नैण रा डबडोळां

सुपनां रा भूत,

बैर्‌यां रा बोलणा

बोले है पूत,

रीत रौ समदर

कुण बांधै पाळ?

पोथ्यां में सीख रा

उजाळा मुळकावै,

चांदी रा टूकां पै

सब नाचै, गावै,

रगत नै ततावै कितणूं

आखर रौ उबाळ?

स्रोत
  • पोथी : मोती-मणिया ,
  • सिरजक : अरजुन ‘अरविन्द’ ,
  • संपादक : कृष्ण बिहारी सहल ,
  • प्रकाशक : चिन्मय प्रकाशन
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