आभो टोपसी सो

अर

धरती कागद रै चन्दै दांई

लागै

आज रै मिनख अर विग्यानी न।

मंगल गुरू शुक्र अर शनि

संधि पत्र ले’र

अधीनता स्वीकारण नै

त्यार है आज रै मिनख अर विग्यानी रो।

मित्र अर वरुण भी

हाजर खड़ा है

आज रै मिनख अर विग्यानी सामै।

देख’र

आज रो मिनख अर विग्यानी

फूल्यो नी समावै

घणो इतरावै

आपरै पुरसारथ ऊपर।

पण

आज रो मिनख अर विग्यानी

पांबा थका पांगलो

आंख्यां थको आंधो

अर

बिना पूंछरो बंड है।

बो आपरै सिर ऊपर

कालकूट भर्‌योड़ो

कालपात्र लियां सदा घूमै

बो नास री नदी किनारै खड़ो है

जे कालकूट रो पात्र

इण आदमी या विग्यानी रै हाथां

छूटग्यो

तौ

खुदरौ काळ अर नास

बण जासी आदमी अर विग्यानी।

बात रै सामै है

पण देखै कोनी

जद कालकूट फैलसी

भाग सकै कोनी।

खाली हाथ हिलातो रैसी

आदमी अर विग्यानी।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत अक्टूबर 1981 ,
  • सिरजक : शान्ति शर्मा ,
  • संपादक : चन्द्रदान चारण ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृत अकादमी, बीकानेर
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