सगळा हा

उण घड़ी

जिण घड़ी

औसरी ही

आभै सूं अकूंत माटी

सगळा जड़ होय

मिळग्या बणतै थेड़ में

आज भळै

आपरा वंसजां नै

खोद काढ्या है

कस्सी

खुरपी

बठ्ठल-तगारी!

स्रोत
  • पोथी : आंख भर चितराम ,
  • सिरजक : ओम पुरोहित ‘कागद’ ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण