हरेक आदमी,

आपरी जग्या नों छोड़े

कैवै, लोग,

जका,

छोड़ता रैवै, लगूलग

आपरी जग्यां

जंगळ रै

अेकलैपण सूं ऊब,

बस जावै

गांवां में,

अर, पळक झपकतां,

बांधले गूदड़ा,

अेक नुवै सैर री

टो में

जठे लोग, डरै

बिजळी री तारां सू,

पण,

रोजमरै जीवण में, ताकै,

जका, बिजळी रौ मूण्डौ,

अबोळी, सान्त अर

उळझ्योडी

रात री जोवे बाट

जका-घबरावै

अन्धारै सूं,

ची-भौं सूं,

हड़बड़ाट सूं,

अजूबौ लागै

जद व्हे,

भीड़ छोड़'र जोवै

सुणसांण सड़क,

अर व्हे 'सूण' जग्यै सूं

घबरा’र

फेरूं करै कळपणां

अेक दूजी भीड़ री,

खूंखार जिनावरां नै जीत,

डरै

बिछौंदरी अर कैंकडै सूं,

म्याऊ-म्याऊं सू,

बौं बौं सूं,

चैंक जावै

नींद में सुण'र-

किवाड़ां री खट खट,

धूज जावै

भींत माथै जो'र

खुद री छीयां

कांप जावै

सुण'र खुद रै

हिये री धक धक

अर भौ लागै

अपणै आप सूं

झूझण रै

फळा सूं

अर व्हे ई,

तियारी करै

जुग जीतण री!

व्हे, भटक जावै-

सैर में,

मुगती चावै

मकड़ी रै जाळां सूं,

चीलां रै माळां सूं,

अर ईं गुन्थाळै में,

व्हे, जद, उतर जावै,

जिणगी रा पावड़िया,

पूठा-न्हाटण चावै

जंगळ में,

कैड़ी उल्टा-पल्टी?

कैड़ी घबराट??

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : आनन्द प्रिय ,
  • संपादक : दीनदयाल ओझा
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